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Wednesday 21 March 2012

नौ रूपों की महिमा अपार सुख-समृद्धि का खोले द्वार


नौ रूपों की महिमा अपार सुख-समृद्धि का खोले द्वार
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    नवरात्र के नौ दिनों में माता के नौ रूपों की पूजा करने का विशेष विधि विधान है। साथ ही इन दिनों में जप-पाठ, व्रत-अनुष्ठान, यज्ञ-दानादि शुभ कार्य करने से व्यक्ति को पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। इस वर्ष में पहला नवरात्र शुक्रवार के दिन उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में प्रारंभ होगा, तथा ये नवरात्र 1 अप्रैल 2012 तक रहेंगे।

  • 23 मार्च 2012 के दिन से नव संवत्सर प्रारंभ होगा। साथ ही इस दिन से चैत्र शुक्ल पक्ष का पहला नवरात्रा होने के कारण इस दिन कलश स्थापना भी की जाएगी। नवरात्र के नौ दिनों में माता के नौ रूपों की पूजा करने का विशेष विधि-विधान है। साथ ही इन दिनों में जप-पाठ, व्रत-अनुष्ठान, यज्ञ-दानादि शुभ कार्य करने से व्यक्ति को पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। इस वर्ष में पहला नवरात्र शुक्रवार के दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में प्रारंभ होगा, तथा ये नवरात्र 1 अप्रैल 2012 तक रहेगें।
    सर्वप्रथम श्री गणेश का पूजन: प्रतिपदा तिथि के दिन नवरात्र पूजा शुरू करने से पहले कलश स्थापना जिसे घट स्थापना के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में देवी पूजन का विशेष महात्मय है। इसमें नौ दिनों तक व्रत-उपवास कर, नवें दिन दस वर्ष की कन्याओं का पूजन और उन्हें भोजन कराया जाता है।
    शुभ मुहूर्त में घट स्थापना: सभी धार्मिक तीर्थ स्थलों में इस दिन प्रात: सूर्योदय के बाद शुभ मुहूर्त समय में घट स्थापना की जाती है। नवरात्र के पहले दिन माता दुर्गा, श्री गणेश देव की पूजा की जाती है। इस दिन मिट्टी के बर्तन में रेत-मिट्टी डालकर जौ-गेहूं आदि बीज डालकर बोने के लिए रखे जाते है।
    भक्त जन इस दिन व्रत-उपवास और यज्ञ आदि का संकल्प लेकर माता की पूजा प्रारंभ करते हैं। नवरात्र के पहले दिन माता के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। जैसा की सर्वविदित है, माता शैलपुत्री, हिमालय राज जी पुत्री है, जिन्हें देवी पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रों में माता को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखे जाते है। रात्रि में माता दुर्गा के नाम का पाठ किया जाता है। इन नौ दिनों में रात्रि में जागरण करने से भी विशेष शुभ फल प्राप्त होते है।
    माता के नौ रुप: नवरात्रों में माता के नौ रूपों कि पूजा की जाती है। नौ देवियों के नाम इस प्रकार है। प्रथम-शैलपुत्री, दूसरी-ब्रह्मचारिणी, तीसरी-चंद्रघंटा, चौथी-कुष्मांडा, पांचवी-स्कंधमाता, छठी-कात्यायिनी, सातवीं-कालरात्री, आठवीं-महागौरी, नवमीं-सिद्धिदात्री।
    चैत्र पक्ष पहला नवरात्रा - घट स्थापना विधि 
    शारदीय नवरात्रा का प्रारंभ आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापन के साथ होता है। कलश को हिंदु विधानों में मंगलमूर्ति गणेश का स्वरूप माना जाता है। अत: सबसे पहले कलश की स्थान की जाती है। कलश स्थापन के लिए भूमि को सिक्त यानी शुद्ध किया जाता है। भूमि की शुद्धि के लिए गाय के गोबर और गंगाजल से भूमि को लिपा जाता है। विधान के अनुसार इस स्थान पर सात प्रकार की मिट्टी को मिलाकर एक पीठ तैयार किया जाता है, अगर सात स्थान की मिट्टी नहीं उपलब्ध हो तो नदी से लाई गई मिट्टी में गंगोट यानी गांगा नदी की मिट्टी मिलाकर इस पर कलश स्थापित किया जा सकता है।
    पहले दिन माता शैलपुत्री पूजन, पहले दिन किस देवी कि पूजा करे? 
    कलश में सप्तमृतिका यानी सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा सादर भेंट किया जाता है और पंच प्रकार के पल्लव से कलश को सुशोभित किया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है।
    जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नमोस्तुते। इसी मंत्र जाप से साधक के परिवार को सुख, संपत्ति एवं आरोग्य का आर्शीवाद प्राप्त होता है।
    कलश स्थापना के बाद देवी प्रतिमा स्थापित करना
    कलश स्थापना के बाद देवी प्रतिमा स्थापित करना देवी दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल पर बीच में स्थापित की जाती है और उनके दोनों तरफ यानी दाईं ओर देवी महालक्ष्मी, गणेश और विजया नामक योगिनी की प्रतिमा रहती है और बाईं ओर कार्तिकेय, देवी महासरस्वती और जया नामक योगिनी रहती है। चूंकि भगवान शंकर की पूजा के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है। अत: भगवान भोले नाथ की भी पूजा भी की जाती है। प्रथम पूजा के दिन ‘शैलपुत्री’ के रूप में भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा फूल, अक्षत, रोली, चंदन से होती है। इस प्रकार दुर्गा पूजा की शुरूआत हो जाती है। प्रतिदिन संध्या काल में देवी की आरती होती है। आरती में ‘जग जननी जय जय’ और ‘जय अंबे गौरी’ के गीत भक्त जन गाते हैं।
    नवरात्रों में किस दिन करें किस ग्रह की शांति
    नवरात्र में नवग्रह शांति की विधि:-
    n यह है कि प्रतिपदा के दिन मंगल ग्रह की शांति करानी चाहिए।
    n द्वितीय के दिन राहु ग्रह की शांति करने संबंधी कार्य करने चाहिए।
    n तृतीया के दिन बृहस्पति ग्रह की शांति कार्य करना चाहिए।
    n चतुर्थी के दिन व्यक्ति शनि शांति के उपाय कर स्वयं को शनि के अशुभ प्रभाव से बचा सकता है।
    n पंचमी के दिन बुध ग्रह,
    n षष्ठी के दिन केतु
    n सप्तमी के दिन शुक्र
    n अष्टमी के दिन सूर्य
    n नवमी के दिन चंद्रमा की शांति कार्य किए जाते है।
    किसी भी ग्रह शांति की प्रक्रिया शुरू करने से पहले कलश स्थापना और दुर्गा मां की पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद लाल वस्त्र पर नव ग्रह यंत्र बनावाया जाता है। इसके बाद नवग्रह बीज मंत्र से इसकी पूजा करें फिर नवग्रह शांति का संकल्प करें।
    प्रतिपदा के दिन मंगल ग्रह की शांति होती है, इसलिए मंगल ग्रह की फिर से पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद पंचमुखी रूद्राक्ष, मूंगा या लाल अकीक की माला से 108 मंगल बीज मंत्र का जप करना चाहिए। जप के बाद मंगल कवच एवं अष्टोत्तरशतनाम का पाठ करना चाहिए। राहू की शांति के लिए द्वितीया को राहु की पूजा के बाद राहू के बीज मंत्र का 108 बार जप करना, राहू के शुभ फलों में वृ्द्धि
    करता है।
    नवरात्रों में देवी के संग किस देव की पूजा करें।
    नवरात्र में मां दुर्गा के साथ-साथ भगवान श्रीराम व हनुमान की आराधना भी फलदायी बताई गई है। सुंदरकाण्ड, रामचरित मानस और अखण्ड रामायण से साधक को लाभ होता है। शत्रु बाधा दूर होती है। मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। नवरात्र में विघि विधान से मां का पूजन करने से कार्य सिद्ध होते हैं और चित्त को शांति मिलती है।
     

Tuesday 6 March 2012

होली पूजन , मुहूर्त यवं विधि ( 2012 ) :-


होली हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। 
यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। 
होली की शाम को होलिका का पूजन किया जाता है। 
होलिका का पूजन विधि-विधान से करने से अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। 
होली की पूजन विधि इस प्रकार है-

पूजन सामग्री

रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल, बड़कुले (भरभोलिए) आदि।

पूजा विधि

एक थाली में सारी पूज सामग्री लें ! 
साथ में एक पानी का लौटा भी लें। 
इसके पश्चात होली पूजन के स्थान पर पहुंचकर नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करते हुए स्वयं पर और पूजन सामग्री पर थोड़ा जल छिड़कें-

ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु,
ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु।

अब हाथ में पानी, चावल, फूल एवं कुछ दक्षिणा लेकर नीचे लिखें मंत्र का उच्चारण करें-

ऊँ विष्णु: विष्णु: विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया अद्य दिवसे क्रोधी नाम संवत्सरे संवत् 2068 फाल्गुन मासे शुभे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां शुभ तिथि बुधवासरे ----------गौत्र(अपने गौत्र का नाम लें) उत्पन्ना----------(अपने नाम का उच्चारण करें) मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सर्वपापक्षयपूर्वक दीर्घायुविपुलधनधान्यं शत्रुपराजय मम् दैहिक दैविक भौतिक त्रिविध ताप निवृत्यर्थं सदभीष्टसिद्धयर्थे प्रह्लादनृसिंहहोली इत्यादीनां पूजनमहं करिष्यामि।



गणेश-अंबिका पूजन

सर्वप्रथम हाथ में फूल व चावल लेकर भगवान गणेश का ध्यान करें-

गजाननं भूतगणादिसेवितं 

कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।

उमासुतं शोकविनाशकारकं 

नमामि विघ्नेश्वरपादपमजम्।।

ऊँ गं गणपतये नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।
  • अब भगवान गणपति को एक पुष्प पर रोली एवं अक्षत लगाकर समर्पित कर दें।

ऊँ अम्बिकायै नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि सर्मपयामि।।

  • मां अंबिका का ध्यान करते हुए पंचोपचार पूजा के लिए गंध, चावल एवं फूल चढ़ाएं।

ऊँ नृसिंहाय नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।

  • भगवान नृसिंह का ध्यान करते हुए पंचोपचार पूजा के लिए गंध, चावल व फूल चढ़ाएं।

ऊँ प्रह्लादाय नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।

  • प्रह्लाद का स्मरण करते हुए नमस्कार करें और पंचोपचार हेतु गंध, चावल व फूल चढ़ाएं।

अब नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करते हुए होली के सामने दोनो हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं तथा अपनी मनोकामनाएं की पूर्ति के लिए निवेदन करें-

असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्त्वां पूजयिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव:।।

अब गंध, चावल, फूल, साबूत मूंग, साबूत हल्दी, नारियल एवं बड़कुले(भरभोलिए) होली के डांडे के समीप छोड़ें।
कच्चा सूत उस पर बांधें और फिर हाथ जोड़ते हुए होली की तीन, पांच या सात परिक्रमा करें। 
परिक्रमा के बाद लोटे में भरा पानी वहीं चढ़ा दें।


शुभ मुहूर्त :- 

  • 7 मार्च, 2012 को शाम 05:55 बजे से  8 मार्च को प्रात: 03:11 बजे तक पूर्णिमा रहेगी। 
  • होलिका दहन पूर्णिमा में किया जाता है। 
  • लेकिन भद्रा तिथि के शुरुआती 2 घंटों मे पूजन शुभ नहीं माना जाता इसलिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं-


- शाम 8 से 9:30 तक शुभ !

- रात 9:30 बजे से रात 11 बजे तक अमृत योग में !

- रात 11 बजे से 12:30 तक चर

- 09:09  से 11:24 तक (वृश्चिक लग्न में) 

...................................................... द्वारा :- आचार्य डॉ. संतोष " संतोषी "